उत्तराखंड की राजनीति में अजीब सा भूचाल आ गया है। जहां एक तरफ प्रेमचंद अग्रवाल के त्यागपत्र से सभी पहाड़ी खुश हैं वहीं दूसरी ओर मैदानी लोगों के अंदर एक डर समा गया है। विधानसभा में अपने दिए गए आपत्तिजनक बयान के बाद पूर्व कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने जनता से माफी मांग ली परन्तु पहाड़ के लोगों ने माफ नहीं किया। उनके बयान को विपक्षी दलों ने मुद्दा बना कर आग में घी का काम किया। परिणाम यह हुआ कि प्रेमचंद को अपने मंत्री पद से त्यागपत्र देना पड़ गया। पहाड़ी और मैदानी विवाद या फिर यूं कहें कि एक आपत्तिजनक बयान ने प्रेमचंद की कमान ले ली।
बता दें कि प्रेमचंद अग्रवाल ने अपने मंत्री पद से त्यागपत्र देते समय भावुक हो गए और फ़फ़क फ़फ़क कर रोने लगे। उन्होंने कहा कि मेरे वक्तव्यों को तोड़ मरोड़ कर पेश किया गया। यद्यपि इस बात के लिए उन्होंने माफी भी मांग ली परन्तु उनका विरोध थमने का नाम नहीं ले रहा। ऐसे में अग्रवाल ने यह कहा कि उत्तराखंड के विकास कार्यों के लिए कोई भी जरूरत होगी वहां उनका पूरा योगदान रहेगा। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि उनका जन्म उत्तराखंड में ही हुआ हैं। उन्होंने कहा कि वह आंदोलनकारी भी रहे हैं परन्तु उन्हें यह साबित करना पड़ रहा है कि उत्तराखंड राज्य बनने में उनका योगदान रहा है। आज जिस तरह का माहौल बनाया जा रहा है इससे वह बहुत आहत हैं और प्रदेश के लिए यह कतई अच्छा नहीं हो रहा है।
यदि एक नज़र हम प्रेमचंद के राजनीतिक पृष्ठभूमि पर डालें तो यह एक मेधावी छात्र रहे हैं। एमकॉम और एलएलबी के बाद 1980 यह एबीवीपी के अध्यक्ष बने। ऋषिकेश के 2007 पहली बार विधायक चुने गए। उसके बाद 2012, 2017, और 2022 से वहीं से विधायक चुने गए। अब यदि उनके वक्तव्यों की बाद की जाए तो विवादों से इनका पुराना नाता है। दो साल पहले एक वायरल वीडियो में यह सड़क पर किसी लड़के के साथ हाथापाई करते नजर आए थे, और उसे थप्पड़ भी मारा था। इनके ऊपर अपने पुत्र को जल संस्थान में नौकरी दिलाने का आरोप लगा था।
आपको बता दें कि प्रेमचंद एक संघी नेता हैं और उनके साथ ऐसा होने पर मुख्यमंत्री और केंद्रीय नेतृत्व की ओर से अभी कोई बयान नहीं आया है। हो सकता है कि क्षेत्रवाद की पनपती आग को शांत करने के लिए ऐसा हो रहा है। परन्तु इसका एक गहरा प्रभाव आने वाले चुनावों पर पड़ सकता है। पर भाजपा इस घटना से बैकफुट पर नजर आ रही है। एक संघी होने के बावजूद भी प्रेमचंद को त्यागपत्र देना पड़ रहा है वह भी पनपते क्षेत्रवाद को लेकर यह भाजपा और केंद्रीय नेतृत्व के लिए गंवारा नहीं होगा। आने वाले समय में इस पर अवश्य ही कुछ बड़ा धमाका हो सकता है।