झंडे जी मेले के इतिहास में छुपा है दून के नामकरण का राज

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देहरादून में प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी झंडे जी का मेला बड़े ही जोर शोर से मनाया जाएगा। होली के पांचवें दिन झंडे जी चढ़ाए जाते हैं जो की 30 मार्च को चढ़ाया जायेगा। झंडे जी मेला 2024 की तैयारी पूरी हो चुकी हैं। गिलाफ सिलाई का कार्य पूरा हो चुका है, गुरुवार से पंजाब समेत पूरे देश से संगतें आनी शुरू हो गई हैं। झंडे जी साहिब के वर्तमान महंत देवेंद्रदास ने संगतों को दर्शन दिए।

बता दें कि महंत देवेंद्र दास ने संगतों से कहा कि जीवन में आहार, व्यवहार, और विचारों की पवित्रता बनाए रखें। सभी नए संगतों को नामदान के साथ गुरुमंत्र दिया जायेगा। गुरुद्वारे की सजावट का जिम्मा मेला आयोजन समिति ने उठाया। रात के समय झंडे जी की खूबसूरती आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। पूरा शहर आस्था की सरोवर में डूब चुका है।

आपको बता दें कि सिखों के सातवें गुरु हर राय महाराज के बड़े पुत्र गुरु राम राय महाराज ने 1675 ई. में चैत्र मास के कृष्ण पक्ष के पंचमी के दिन देहरादून में पदार्पण किया था। इसके ठीक 1 वर्ष के बाद 1676 ई. में इसी दिन उनके सम्मान में उत्सव मनाया जाने लगा और यही से झंडे जी मेले की शुरुआत हुई। और यह मेला देहरादून का वार्षिक समारोह बन गया।

मुगल बादशाह औरंगजेब ने गुरु राम राय को हिंदू पीर महाराज की उपाधि दी थी। महाराज ने बहुत ही कम आयु में संगतों के साथ भ्रमण पर निकल गए थे। भ्रमण के दौरान वह देहरादून आए और यहां उनके घोड़े का पैर जमीन में धंस गया और वह संगत को यहीं विराम करने का आदेश दिये।

यह भी बता दें कि यहां डेरा डालने की सूचना पाकर मुगल शासक औरंगजेब ने गढ़वाल के राजा फतेह शाह को यह आदेश दिया कि उनका पूरा ख्याल रखा जाए तब महाराज ने चारों दिशाओं में तीर चलाएं और वह तीर जहां तक गया वह पूरी जमीन उनकी हो गई। गुरु राम राय के यहां डेरा डालने की वजह से इसका नाम डेरादून पड़ा जो बाद में देहरादून हो गया।

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