बुधवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने देहरादून में इंदिरा गांधी फॉरेस्ट अकादमी के दीक्षांत समारोह में भाग लिया। उन्होंने कहा कि वन सेवा अधिकारियों को न केवल भारत के प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण और संवर्द्धन करना है, बल्कि पारंपरिक ज्ञान का उपयोग मानवता के हित में भी करना है।
बता दें कि राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा की विश्व के कई भागों में वन संसाधनों की क्षति बहुत तेजी से हुई है। वनों का विनाश किया जाना एक तरह से मानवता का विनाश करना है। विज्ञान एवम तकनीकी की मदद से हम क्षति-पूर्ति तेज गति से कर सकते हैं। ऐसे विभिन्न विकल्पों का आकलन करके भारत की भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप समाधान विकसित करने की आवश्यकता है। इस दिशा में आप सब का योगदान महत्वपूर्ण होगा।
साथ ही उन्होंने कहा कि आज यह सर्वविदित है कि पृथ्वी की जैव-विविधता एवं प्राकृतिक सुंदरता का संरक्षण अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य है जिसे हमें अति शीघ्र करना है। वन एवं वन्य जीवों के संरक्षण और संवर्धन के जरिए मानव जीवन को संकट से बचाया जा सकता है। इसलिए इंडियन फॉरेस्ट सर्विस के अधिकारियों के दायित्व को मैं बहुत महत्वपूर्ण मानती हूँ। इसी की साथ उन्होंने कहा कि आज यह समझना बहुत जरूरी है कि हम पृथ्वी के संसाधनों के मालिक नहीं हैं बल्कि संरक्षक हैं। हमारी प्राथमिकताएं मानव केंद्रित होने के साथ-साथ प्रकृति केंद्रित भी होनी चाहिए। वस्तुत: प्रकृति केंद्रित होकर ही हम सही अर्थों में मानव केंद्रित हो सकेंगे।
वहीं राष्ट्रपति ने कहा कि जब आप अपने कार्यक्षेत्र में जाएँ तो वहाँ के जनजातीय लोगों के बीच समय बिताएं। उनका स्नेह एवं विश्वास अर्जित करें। वहाँ के समाज की अच्छी आदतों से सीखें और उनका प्रचार-प्रसार भी करें। आप अपने दायित्व की स्वामित्व लें और प्रेरणास्त्रोत बनें। आपका कार्य ऐसा हो जो उस क्षेत्र के बच्चों को फॉरेस्ट सर्विसेज में आने के लिए प्रेरित करे।
यह भी बता दें कि राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि सदियों से जनजातीय समाज के संचित ज्ञान के महत्व को समझा जाए और पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए उसका उपयोग किया जाए। उनकी सामूहिक ज्ञान हमें पारिस्थितिक टिकाऊ, नैतिक रूप से वांछनीय, और सामाजिक रूप से न्यायसंगत मार्ग पर आगे बढ़ने में मदद कर सकती है।
इस मौके पर राज्यपाल गुरमीत सिंह, इंदिरा गांधी फॉरेस्ट अकादमी के प्रोफेसर समेत छात्राएं और छात्र मौजूद रहे।