तमसा और टोंस जैसी नदियों को स्वयं में विलीन करने वाली “आसन नदी” नाले में परिवर्तित, क्या मिलेगा इसे इसका वास्तविक रूप?

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पौराणिक कथाओं के अनुसार चंद्रबनी वह जगह है जहां गौतम ऋषि का आश्रम था। जब लोग हर तरफ सूखे की मार झेल रहे थे तब गौतम ऋषि का आश्रम हरा भरा था। ऐसे में एक दिन देवर्षि नारद की मदद से सूखे से पीड़ित लोग गौतम ऋषि के आश्रम में आए और गौतम ऋषि ने पत्नी अहिल्या सहित वरुण देव के आह्वाहन से गौतम कुंड बनाया जिसे वरुण देव ने जल से भर दिया और यह जल कभी न समाप्त होने का वर देकर अदृश्य हो गए। वह गौतम कुंड आज चंद्रबनी में मौजूद है।

बता दें कि गौतम कुंड के जल का प्रयोग सभी बिना किसी भेदभाव के किया करते थे। साथ ही यहां जल के कई स्त्रोत हुए जहां से जल की धाराएं निकल कर एक नदी का स्वरूप ले ली जो पूर्व से पश्चिम की ओर बहते हुए यमुना नदी में जाकर मिलती है। इस नदी का नाम है आसन नदी। जो चंद्रबनी से पश्चिम की ओर बहते हुए बड़ोवाला से उत्तर दिशा की तरफ रुख कर लेती है। फिर केशोवाला से पश्चिम की ओर बहती है। इसी के साथ यह नदी मसूरी और शिवालिक की पहाड़ियों से निकलने वाली कई छोटी बड़ी नदियों को अपने में समाहित करते हुए अपना अस्तित्व बनाए रखती है।

यहां तक कि तमसा और टोंस जैसी बड़ी नदियां भी आसन नदी में विलीन हो जाती हैं अंत भूमि के गर्भ से उत्पन्न एक छोटी सी नदी आसन नदी का संगम हिमालय से निकलने वाली नदी यमुना से होती है, और यहां आसन बैराज पक्षी विहार है, जो उत्तराखंड के पर्यटन के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण स्थान है।

परन्तु आसन नदी का हाल अब अत्यंत बेहाल हो चुका है। यह नदी धीरे धीरे नाले में परिवर्तित हो रही है। चंद्रबनी के रहने वाले दीपक राणाकोटी ने बताया कि आज से करीब 25 वर्ष पूर्व वह इस नदी में नहाया करते थे, उन्होंने यह भी बताया कि वह तैरना भी इस नदी में सीखे। परन्तु आज स्थिति यह है कि नदियों में कूड़ा कचड़ा डालने के कारण यह नदी नाले में परिवर्तित होती जा रही है।

बरसात के दिनों जब भारी वर्षा होती है तब यहां के स्थानीय निवासियों के घर में वह पानी घुस जाने से अनेकों प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यदि प्रदेश की धामी सरकार को देहरादून के इस क्षेत्र और खास तौर पर इस नदी की के सौंदर्यीकरण पर ध्यान दे तो निश्चित रूप से क्षेत्र के विकास के साथ साथ सतयुग से जुड़ी इस धर्मस्थली की लोकप्रियता बढ़ेगी।

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